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  • भाषा के आधार पर उच्च संस्थानों में  क्लास डिविजनभाषा के आधार पर उच्च संस्थानों में  क्लास डिविजन

    भाषा के आधार पर उच्च संस्थानों में क्लास डिविजन

    क्लास डिविजन मुख्यत: तीन है अपर क्लास ,मिडिल क्लास और लोअर क्लास ये सामाजिक वर्गीकरण जाति के आधार पर नहीं हैं ये वर्गीकरण पैसे और भाषाई आधार पर हैं जो समाज में गरीबी और अमीरी की खाई को और गहरा किया हैं। भारत के महानगरों से लेकर कस्बों तक ये खाई दिखाई पड़ती है। भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में उच्च शिक्षा में अंग्रेजी भाषा का उपयोग अंग्रेज सरकार से चली आ रही है जो आज भी जारी है।स्कूली शिक्षा में निजी स्कूलों में अंग्रेजी भाषा में पढ़ाई होती हैं परंतु सरकारी स्कूलों में आज भी हिंदी या स्थानीय भाषा का उपयोग होता है । जिनके पास पैसे और संसाधन मौजूद हैं वे अंग्रेजी भाषा में निजी स्कूलों से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं पर जो अभावग्रस्त हैं पैसे की तंगी है वे किसी तरह से शिक्षा स्थानीय भाषा में सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं।

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  • बहुत तकलीफ होती है जब आप योग्य हों पर आपकी योग्यता कोई न पहचानेबहुत तकलीफ होती है जब आप योग्य हों पर आपकी योग्यता कोई न पहचाने

    बहुत तकलीफ होती है जब आप योग्य हों पर आपकी योग्यता कोई न पहचाने

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  • विचारों और तुष्टिकरण के बाजारवाद में भारतीय लोकतंत्र के स्वरूप                                    विचारों और तुष्टिकरण के बाजारवाद में भारतीय लोकतंत्र के स्वरूप

    विचारों और तुष्टिकरण के बाजारवाद में भारतीय लोकतंत्र के स्वरूप

    विचारों और तुष्टिकरण के बाजारवाद में भारतीय लोकतंत्र के स्वरूप विचार क्या हैं ? विचारों की सीमाएं क्या है ?? विचारों की प्रसांगिकता क्यों जरूरी है लोकतंत्र में ??कैसा विचार आज के नए भारत के निर्माण में उपयोगी होगा ?? संविधान सम्मत विचार के लिये भारत के बुद्धिजीवी वर्ग की नीति और उनकी नियत कैसी है ??सवालों के दायरों में उलझकर सिर्फ हम सवाल कर सकते हैं समाधान के दायरे के हर दरवाजे खोलने होंगे ताकि एक स्वस्थ लोकतंत्र आने वाले भविष्य में नए भारत के निर्माण में अपना योगदान दे पाएं । तुस्टीकरण का मतलब है एक खास समूह यानी विशेष जाति और धर्म को किसी तरह उसका एक सुनियोजित तरीके से उसका प्रचार-प्रसार या उपयोग किसी विशेष प्रयोजन के लिये हो । विचार और तुस्टीकरण के कॉकटेल में बाजारवाद आग में घी का काम करता है । आम आदमी की बौद्धिक दृष्टिकोण कोहै बाजारवाद ने काफी बदल दिया और राजनीतिक पार्टियों ने खोखले विचारों से जाति और धर्म के बीच खाई को और गहरा किया है । मीडिया मतलब टीवी ,रेडियो ,प्रिंट नहीं सोशल मीडिया भी जहाँ सूचनाओं का अंबार के साथ-साथ हेट स्पीच उसमें गलत तथ्यों की जानकारी या किसी एक विचार के लोगों दूसरे लोगों के प्रति घृणा का नंगा पर्दशन होता है जिससे उनके मानसिक पटल पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मानसिक तौर पर भारत के ये लोग जो घृणा से पीड़ित हैं वो समाज के लिए खतरा है या कह सकते हैं घृणित विचारों की खेती से इंसान घृणित रोबोटिकरण का अखाड़ा परिषद का निर्माण करते जा रहे हैं जो मानवता के लिए खतरा है। इस खतरे से निपटने के लिए समाज मे स्वतंत्र और सकारात्मक सोच को बड़े पैमाने पर प्रचार प्रसार करने की जरूरत है ताकि इंसान में इंसानियत बची रहे । स्वाधीनता विचारों में सिंचित करने की जरूरत है ताकि बाजारवाद के दायरों को समझने में सहूलियत हो और स्वतंत्र शिक्षा के माध्यम से स्वराज्य हर व्यक्ति तक हर स्तर पर इसके मायने को लेकर मंथन करने की जरूरत है ।

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  • भटकते हुए युवा के निर्माण में तथाकथित प्रबुद्ध वर्ग का समाजिक योगदानभटकते हुए युवा के निर्माण में तथाकथित प्रबुद्ध वर्ग का समाजिक योगदान

    भटकते हुए युवा के निर्माण में तथाकथित प्रबुद्ध वर्ग का समाजिक योगदान

    विचारों की खेती में तथाकथित मानसिक रूप से प्रबुद्ध वर्ग ने ही हमें खाँचे में बाँटकर अपना आर्थिक और राजनीतिक हित साधने की कोशिश की है और मानसिक रूप से कुंठित भविष्य के निर्माण में एक अहम भूमिका निभाई है।विचारों के मंथन में एक-दूसरे को नीचे दिखाते हो ,खाँचे में बाटते हो, और लोगों को ये दिखाने की कोशिश करते हो कि स्वतंत्र विचारों के दायरों का दारोमदार हमी से होकर निकलती है ।वेवजह किताबी बातें बताते हो लेकिन आपके व्यवहार में ये खीझ झलकता है जरा ठहरकर सोच लेना कि हम क्या सोचते हैं और क्या बोल देते हैं और क्या करते हैं ये सब खुद को नहीं दिखता है अपने ही विवेक पर आत्ममुग्ध होना मूर्खता से बढ़कर कुछ भी नहीं है। चलो जब हकीकत को जानोगे भटकते हुए युवा को मानोगे जिंदगी का मर्म है मानवता और स्वतंत्र विचारों के जाप से ,बोल से जाहिर करने से नहीं आपके व्यवहार में मानवता और स्वतंत्र विचारों से समाज का ताना-बाना दिखाई देना चाहिए। इतिहास हमेशा उस बौद्धिक दृष्टिकोण को अपनाता है जो विचारों से स्वतंत्र हो पर ऐसा सच में होता है क्या ?? हाँ होता है मेरे नजरिए से पर जो बौद्धिक रूप से सम्पन्न होते हुए भी विचारों में निजी फायदे के लिए कैद होते हैं वे लोग समाज को एक दायरों में समेटना चाहते हैं। वे अपना दायरा संख्याबल के आधार पर बढ़ाकर एक दायरे में ही खुदको समेट लेते हैं उन्हें ये सब उहापोह में नहीं भटकते हुए युवा की तरह तो बिलकुल नहीं वे ऐसा सचमुच जानबूझकर करते हैं। चलो निराश होने की जरूरत नहीं है अब एक मसीहे की तलाश करते हैं एक नजरिए की आस करते हैं जो विचारों के द्वंद में भटकते हुए युवाओं की टोली को एक नए समाजिक सरोकार की नींव डाले मानवता की घुटी पिलाए बौद्धिक संपदा बढ़ाए औऱ खाँचे में तो बिलकुल न बाँटे और घिसे-पीसे तर्कों को न बढ़ाये खुद को अघोषित बौद्धिक कुठारघातों को भी मानवता रूपी विचारों से एक सफल समाज बनाए।

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  • Digital literacy and media literacyDigital literacy and media literacy

    Digital literacy and media literacy

    क्रांति बातों से लेकर अब डिजिटल रूप ले चुका है अब इंसान को मशीन बनना पड़ेगा या फिर मशीन , आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इंटरनेट ऑफ थिंग्स के माध्य्म से इंसान को कंट्रोल करेगा जैसा कि सोशल मीडिया ,ई-कॉमर्स साइटों के माध्य्म से आपका व्यवहार, हैसियत, दोस्ती हर डेटा मोबाइल में संरक्षित करते हैं सभी के पास स्टोर है सभी का उपयोग कर आपके मन-मस्तिष्क को कंट्रोल किया जा रहा है । जरा सोचियेगा एक तरह के लोग क्यों ही आपके दोस्त बनते हैं आपके विचारों से इतर चीजें क्यों नहीं दिखाई जाती हैं हेट-स्पीच के माध्यम से कब आपके विचार और व्यवहार बदल जाएंगे आपको पता भी नहीं चलेगा ये एक दिन में नहीं होता है सब एक एजेंडे और प्रोपेगैंडा के माध्यम से हर विचार को कौन कितनी तेजी से सनसनीखेज रुप से पहुँचाता है ।। इसके लिये बड़ी-बड़ी टेक कम्पनियों डेटा माइनिंग के लिये करोड़ो रूपये खर्च कर रही है ताकि आप एक प्रोडक्ट बन के रह जाएं आपका अपना विचार प्रकट न कर पाएं । विज्ञापन और it सेल के माध्यम से हर गतिविधियों को प्रसारित और उसकी प्रस्तुतिकरण पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान खींचा जाता है ।

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